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Big breaking :-पीएम मोदी को सीधी चुनौती देने वाला पद स्वीकार क्यों नहीं करना चाहते राहुल गांधी ?

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी, जिनसे 18वीं लोकसभा में विपक्ष के नेता की जिम्मेदारी संभालने की उम्मीद की जा रही थी, पार्टी सूत्रों ने बताया कि वह इस पद को लेने के इच्छुक नहीं हैं।

 

सूत्रों ने बताया कि इस पद के लिए तीन वरिष्ठ नेताओं- कुमारी शैलजा, गौरव गोगोई और मनीष तिवारी के नाम पर विचार किया जा रहा है।

हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों में विपक्ष के बेहतर प्रदर्शन के बाद एक दशक के बाद उसे लोकसभा में अपना नेता मिलेगा। 232 सीटों में से 99 सीटें कांग्रेस के खाते में गई हैं और विपक्ष में सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते उससे विपक्ष के नेता का नाम घोषित करने की उम्मीद है। राहुल गांधी, जिनकी भारत जोड़ो यात्रा को कांग्रेस की बढ़त का कारण माना जाता है। उनके नेतृत्व में पार्टी ने 2014 में 44 सीटें जीतीं और 2019 में 52 सीटें जीतीं थीं, लेकिन इस बार अच्छे प्रदर्शन के कारण राहुल गांधी से संसद में अधिक जिम्मेदारी लेने की उम्मीद की जा रही थी। इस मुद्दे पर विभिन्न नेताओं की ओर से उन पर काफी दबाव रहा है

 

 

 

इस पद से राहुल गांधी को कैबिनेट रैंक मिलता, प्रधानमंत्री मोदी को सीधी चुनौती देने की शक्ति मिलती, INDIA गठबंधन में सहयोगी दलों के साथ बेहतर समन्वय स्थापित करने में मदद मिलती और लोकसभा में अपनी उपस्थिति बढ़ाकर कांग्रेस को मजबूत छवि पेश करने में मदद मिलती। हालाँकि, इससे राहुल गांधी का काम भी बढ़ जाता, जिनकी लोकसभा में उपस्थिति पिछले पांच सालों में महज 51 फीसद रही है। ऐसे में सदन से ही गैर मौजूद रहने वाला नेता, विपक्ष का नेता कैसे बन सकता है। अब सूत्रों का कहना है कि राहुल गांधी, जिन्होंने 2019 में हार के बाद पार्टी प्रमुख के पद से भी इस्तीफा दे दिया था, इस पद के लिए उत्सुक नहीं हैं। उल्लेखनीय है कि, लोकसभा चुनाव के दौरान राहुल गांधी, पीएम मोदी को बहस के लिए लगातार चुनौती दे रहे थे, लेकिन अब उन्हें वो पद मिल रहा है, जिसमे वे हर मुड़े पर प्रधानमंत्री के सामने खड़े हो सकते हैं, तो वे लेने से इंकार कर रहे हैं। इस पद पर रहकर वे ED CBI जैसी संस्थाओं के प्रमुख के चयन में भी योगदान दे सकते हैं, जिनकी वे अक्सर आलोचना करते रहते हैं।

सूत्रों के अनुसार, राहुल गांधी ने संसद में अपनी मां सोनिया गांधी के निर्वाचन क्षेत्र रायबरेली का प्रतिनिधित्व करने का भी फैसला किया है। आज शाम को इसकी घोषणा होने की उम्मीद है। वह वायनाड सीट छोड़ देंगे, जहां से उनकी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा के चुनाव लड़ने की उम्मीद है। उत्तर प्रदेश में परिवार का दूसरा गढ़ अमेठी पहले ही कांग्रेस के हाथों में आ चुका है, जहां गांधी परिवार के लंबे समय से सहयोगी रहे केएल शर्मा ने भाजपा की पूर्व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को हराया है।

 

 

 

प्रियंका गांधी वाड्रा ने आम चुनाव नहीं लड़ा था, बल्कि पार्टी के लिए प्रचार पर ध्यान केंद्रित किया था। सूत्रों ने कहा कि उन्हें तीनों गांधी परिवार के संसद में होने पर संदेह था, उन्हें चिंता थी कि इससे भाजपा को अपने “वंशवादी राजनीति” के आरोप के लिए गोला-बारूद मिल जाएगा। सोनिया गांधी संसद के ऊपरी सदन, राज्यसभा की सदस्य हैं।










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